युवती का पेट पत्थर की तरह सख्त हुआ
एम्स में लग रहे हर माह पांच लाख के फ्री इंजेक्शन
रायपुर । राजधानी रायपुर की एक 23 वर्षीय युवती का पेट अचानक ही पत्थर की तरह सख्त हो गया। दिमाग के साथ शरीर का विकास रुक गया। कई दिन डाॅक्टरों के चक्कर काटे। दर्जनों तरह की जांच करवाई, लेकिन बीमारी का पता नहीं चला। इधर युवती के पेट की सख्ती बढ़ती जा रही थी। परिवार वालों के पास इतने पैसे नहीं थे कि प्राइवेट अस्पताल के महंगे टेस्ट करवा सकें। जयपुर के रिश्तेदार को खबर मिली तो उन्होंने बुलवा लिया। वहां जांच में पता चला युवती को गाउचर टाइप-वन बीमारी है, जो बेहद रेयर है। डाॅक्टरों ने इलाज के लिए बेहद महंगी दवाइयों के साथ ढाई-ढाई लाख के दो इंजेक्शन का खर्च बताया। राहत की बात है कि महंगी दवाएं और इंजेक्शन बिल्कुल मुफ्त लग रहे हैं। प्राइवेट कंपनी इलाज का खर्च उठा रही हैं। कंपनियों की ओर से एम्स में हर महीने इलाज का खर्च पहुंच रहा है। युवती के परिजन उसे महीने में दो बार इंजेक्शन लगवाने लेकर जा रहे हैं। युवती की स्थिति में सुधार हो रहा है। डॉक्टरों के अनुसार दवाओं के बेहतर परिणाम सामने आ रहे हैं।
आने वाले दिनों में इसका असर दिखेगा। युवती के पिता परमेश्वर सिंह (बदला हुआ नाम) एक छोटी सी किराना दुकान चलाते हैं। उन्होंने बताया कि अब उन्हें बेटी के स्वस्थ्य होने की उम्मीद है। डाक्टरों के अनुसार युवती को बेहद रेयर बीमारी है। छत्तीसगढ़ में अब तक एक भी इस बीमारी का केस सामने नहीं आया है। इस बीमारी को गाउचर टाइप-वन कहा जाता है।
आठ साल पहले शुरू हुए संकेत
जब युवती 15 साल की थी, तब उसका पेट सख्त होना शुरू हुआ। एक-दो साल किसी ने गंभीरता से नहीं लिया। हालांकि उसी समय से स्थिति ये थी कि किसी भी तरह से दबाने से उसका पेट नहीं दबता था। धीरे-धीरे युवती के शारीरिक और मानसिक स्थिति पर असर पड़ने लगा। उसका विकास रुक गया। यहां जांच कराने के बाद जब डाक्टरों को कुछ समझ नहीं आया तब युवती के परिजन उन्हें अपने रिश्तेदार के यहां जयपुर ले गए। वहां किसी प्राइवेट अस्पताल में कई तरह की जांच के बाद पता चला कि युवती को गाउचर टाइप-वन बीमारी है। डॉक्टर भी इस बीमारी की पहचान होने पर हैरान रह गए। इलाज के महंगे खर्च के बारे में सुनकर परिवार वालों के हाथ-पांव फूल गए। उनकी स्थिति देखकर वहीं के कुछ डॉक्टर आगे आए और उन्होंने इस तरह की बीमारियों के इलाज की सुविधा को लेकर पड़ताल की। पड़ताल से पता चला कि कुछ कंपनियां ऐसी बीमारी के मरीजों का फ्री इलाज करवाती है। डाक्टरों ने ऑन लाइन बीमारी का िरकार्ड उन कंपनियों को भेजकर इलाज का खर्च बताया। कंपनियों की ओर से डाक्टरों के प्रस्ताव पर मदद की मंजूरी दे दी गई। अब हर 15 दिन में युवती को ढाई लाख के इंजेक्शन लग रहे हैं। युवती के परिजनों ने कुछ महीने जयपुर में इंजेक्शन लगवाए और रायपुर आ गए। अब वे एम्स में इलाज करवा रहे हैं। यहां भी कंपनी की मदद से युवती को नियमित इंजेक्शन लगाया जा रहा है।
बीमारी के 3 टाइप
- टाइप वन- इस बीमारी में जिगर व तिल्ली बढ़ जाती है। हड्डी में दर्द व हडि्डयों में फ्रैक्चर। कई बार फेफड़े व किडनी की समस्या। यह बीमारी किसी भी उम्र में हो सकती है। इसमें पेट पत्थर की तरह सख्त हो जाता है।
- टाइप टू- यह ज्यादातर बच्चों को होता है। इस बीमारी में ब्रेन में असर पड़ता है और मानसिक स्थिति बिगड़ जाती है।
- टाइप थ्री - हार्ट व तिल्ली को धीरे-धीरे प्रभावित करता है। सामान्यत: ये बचपन व किशोरावस्था में शुरू होता है। इसमें दिल कमजोर हो जाता है।
गाउचर रोग के लक्षण
- हड्डी का दर्द व फ्रैक्चर
- पेट बढ़ जाना
- हार्ट का बड़ा हो जाना
- नियमित थकान
- हार्ट के वॉल्व में समस्या
- फेफड़ों की बीमारी
- स्किन में लगातार परिवर्तन
क्या है गाउचर बीमारी
यह अनुवांशिक रोग है। यह ग्लूको सेरिब्रो साइडेज एंजाइम की कमी से होता है।
इलाज क्या है
गाउचर बीमारी के लिए फिलहाल कोई सटीक इलाज नहीं है। इंजेक्शन से मरीज को स्थिर रखा जा सकता है। बेहतर नतीजे बहुत कम आते हैं। टाइप- वन व थ्री के लिए दवा व एंजाइम रिप्लेसमेंट थेरेपी प्रभावी मानी जाती है।
रेयर बीमारी और इलाज महंगा है
ये एक रेयर बीमारी है, इसका इलाज काफी महंगा है। साल में इलाज में एक करोड़ तक खर्च आ जाता है। दवा कंपनी है, फ्री में इंजेक्शन मुहैया करवा रही है। इसमें मरीज का वजन बढ़ने के साथ इलाज का खर्च भी बढ़ता है। - डॉ. अतुल जिंदल एसोसिएट प्रोफेसर, पीडियाट्रिक डिपार्टमेंट एम्स