प्रसव के समय और माह के उन दिनों में पंडो समाज की महिलाएं अलग दरवाजे से घर में करती हैं
आना-जाना
कोई और वहां से निकला तो करना पड़ता है शुद्धिकरण
सूरजपुर । पंडाे आदिवासी समाज में अाज भी महिलाओं के लिए अजीबो-गरीब नियम बने हुए हैं। यहां महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान सात दिन और प्रसव के दौरान एक महीने तक परिवार और समाज से दूर रखा जाता है। इसके साथ ही उनके आने जाने के लिए हर घर में एक अलग से दरवाजा बनाया जाता है। जिसमें घर का कोई भी सदस्य उस दौरान प्रवेश नहीं कर सकता है। आज भी हर घर में बांयी ओर महिलाओं के लिए एक अलग दरवाजा बनाया जाता है। पंडो आदिवासी समाज को राष्ट्रपति का दत्तक पुत्र माना जाता है। सूरजपुर जिले के पंडोनगर ग्राम पंचायत में 22 नवंबर 1952 को देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद का आगमन हुआ था।
यहां पर उन्होंने रात्रि विश्राम भी किया था। इसके बाद से यहां के पंडो आदिवासी समाज को राष्ट्रपति का दत्तक पुत्र कहा जाने लगा। वर्तमान में जिस जगह पर राष्ट्रपति रुके थे, वहां पर उनकी याद में राष्ट्रपति भवन बनाया गया है। इसके बाद भी समाज में कुरीतियों को खत्म नहीं किया जा सका है। समाज में आज भी महिलाओं के लिए अलग से नियम कानून मौजूद हैं। जिनसे महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान सात दिनों तक और प्रसव के दौरान एक महीने तक समाज और परिवार से अलग कर दिया जाता है। इस दौरान महिलाएं घर के मुख्य दरवाजे से आवाजाही नहीं कर सकती हैं और न ही घर के किसी सदस्य को छू सकती हैं। वह घर में बायीं ओर विशेष रूप से बनाई गई कोठरी में ही रहती हैं। नित्य क्रिया के अलावा वह अपनी कोठरी से निकल भी नहीं सकती हैं। घर की अन्य महिलाएं उस कोठरी की दहलीज से ही पीने का पानी या खाना उपलब्ध करवाती हैं।
गलती पर करते हैं शुद्धिकरण
महिलाओं के लिए बने विशेष दरवाजे से यदि कोई पुरुष या कोठरी में रह रही महिला यदि मुख्य दरवाजे से गलती से निकल जाती है तो तत्काल उनका शुद्धिकरण करवाया जाता है। इसके लिए तेल और हल्दी का लेप चेहरे और सिर पर लगाया जाता है। यदि जान-बूझकर ऐसा किया जाता है तो समाज उन्हें दंडित करता है। इसके लिए समाज को दावत देनी होती है। अशुद्ध मानी जा रही महिला को किसी विशेष परिस्थिति में यदि छूना पड़ जाए तो सिर्फ परिवार या समाज की महिलाएं ही छू सकती हैं, कोई पुरुष नहीं।
शादी के बाद बदल जाती हैं देवी
पंडो समाज में कुल देवी की पूजा की जाती है और हर घर में एक विशेष स्थान निर्धारित किया जाता है। घर की लड़की की शादी के दौरान वहीं पर पूजा की रस्म पूरी करवाई जाती है। शादी हो जाने के बाद लड़की मायके में हर कोने में घूम सकती है, लेकिन पूजा घर में प्रवेश निषेध होता है। मान्यता है कि उसे घर की पूजा से बेदखल कर दिया जाता है, इसलिए अब ससुराल पक्ष की कुलदेवी ही उसकी आराध्य देवी हैं। इसके अलावा मायके पक्ष की कुलदेवी की पूजा से उसे निकाल दिया गया है।
नियम नहीं मानते तो करते हैं दंंडित
पंडो समाज के जिलाध्यक्ष बनारसी पंडो ने बताया कि यह परंपराएं सदियाें से चली आ रही हैं और इनको मानने की बाध्यता भी है। इनको खत्म करने के लिए समाज का सहयोग नहीं मिल पाता है। यदि कोई इन परंपराओं को मानने से इंकार करता है तो उसे दंडित किया जाता है। फिर भी महिलाओं को कमतर आंकने वाली परंपराओं को धीरे-धीरे खत्म करने की कोशिश की जा रही है।
परंपरा को खत्म करने प्रयास होना चाहिए
समाज की जागरूक महिला पयासी पंडो ने बताया कि समाज की इन परंपराओं को मानने की बाध्यता है। इस कारण वह इनको मान रही हैं। इनको खत्म करने के लिए समाज के बड़े-बुजुर्गों को आगे आना चाहिए और इन्हें खत्म करने का प्रयास करना चाहिए।