जन्म-मृत्यु पंजीकरण दफ्तर में 1901 से दस्तावेजों की हालत खराब
1980 से पहले की जानकारी मिलना मुश्किल
रायपुर । एक तरफ सीएए (नागरिकता संशोधन कानून), एनपीआर (नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर) और एनआरसी (नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन) पर बहस जारी है, तो दूसरी ओर राजधानी के लोगों में यह फिक्र भी है कि अगर पुराने प्रमाणपत्र जरूरी ही हो गए तो क्या नगर निगम के पास इतने पुराने रिकार्ड हैं जो उनका जन्म या परिजनों की मृत्यु को प्रमाणित कर पाएं? भास्कर टीम इसका जवाब खोजने नगर निगम के रिकार्ड रूम में पहुंची तो कई चौंकाने वाली बातें सामने अाईं। जैसे, बीसवीं सदी (1901 से 2000) में रायपुर में जन्मे अधिकांश लोगों के बर्थ रिकॉर्ड सिलसिलेवार ढंग से सुरक्षित नहीं हैं। खासकर 1980 से पहले के दस्तावेजों की मांग की जाए तो मिलने और नहीं मिलने के चांस 50-50 फीसदी ही हैं। कहने को तो निगम के जन्म-मृत्यु पंजीकरण विभाग यानी रजिस्ट्रार दफ्तर में 1901 से दस्तावेज हैं, लेकिन रिकॉर्ड देखने पर पता चला कि 1980 से पहले के दस्तावेज भी गले और कटे-फटे हैं।
1981 का रजिस्टर गायब, रिकार्ड तो 1992 का भी जर्जर
भास्कर टीम ने जब पुराने रिकॉर्ड देखे तो 1916-17 का रजिस्टर सही सलामत मिला, लेकिन पन्ने दरक रहे हैं। चौंकाने वाली बात ये थी कि 1980- 1990 के आसपास के दस्तावेज बुरी तरह फटे हुए थे। इन्हें लकड़ी की अालमारी में रखा गया था। यही सबसे ज्यादा बुरे हाल में मिले। सौ साल पुराने जन्म मृत्यु से जुड़े दस्तावेजों को निगम के रूम नंबर 102 में चार अलमारियों में रखा गया है। करीब 9 साल पहले जब निगम कार्यालय मालवीय रोड से व्हाइट हाउस में शिफ्ट हुआ, तब ज्यादातर रिकॉर्ड स्थानांतरण की प्रक्रिया में अस्त व्यस्त हो गया था। चार अलमारियों में 1908 से व्यवस्थित दस्तावेज तो नजर अाते हैं, लेकिन एक-एक साल की जांच में पता चला कि बीच-बीच के कुछ साल या महीनों के रजिस्टर या तो जर्जर हैं, या फिर है ही नहीं। जैसे, 1948 का रजिस्टर और कागजात तो हैं लेकिन 1981 का कुछ भी नहीं है। 1992 का रिकार्ड इस बुरी तरह जर्जर है कि ढूंढ पाना मुश्किल है।
वजह... हर हफ्ते औसतन 10 अर्जियां
जब से सीएए, एनपीआर को लेकर देश में बहस तेज हुई है, तब से निगम के दफ्तर में हर हफ्ते पुराने जन्म प्रमाणपत्रों के लिए 1 से 10 अर्जियां तक अा रही हैं। अर्जियां मिलने के बाद रिकॉर्ड खंगाला जाता है, कुछ मिल जाता है तो कुछ नहीं मिल रहा है। कुछ रजिस्टर इतने जीर्ण-शीर्ण हो चुके हैं उसे देख पाना तक मुश्किल हो रहा है। ऐसे में अर्जियों को रिकॉर्ड नहीं मिला लिखकर वापस तहसील दफ्तर भेजा जा रहा है। गुरुवार को ही तहसील दफ्तर में अपने रिश्तेदार का 1971 का रिकार्ड ढूंढने पहुंचे व्यक्ति को नगर निगम ने सील-ठप्पे के साथ यह एनओसी दी कि उनके पास रिकार्ड उपलब्ध नहीं है।
भास्कर नॉलेज ऐसे मिलेगा पुराना रिकॉर्ड
राजधानी ही नहीं, पूरे देश में नागरिक पंजीयन प्रणाली के तहत जन्म मृत्यु का रिकॉर्ड रखा जाता है। 1969 में अधिनियम के जरिए इसे अनिवार्य किया गया था। छत्तीसगढ़ में जन्म मृत्यु पंजीयन नियम 2001 के तहत जन्म और मृत्यु का रिकॉर्ड रखना जरूरी है। अगर किसी व्यक्ति को पुराना जन्म प्रमाणपत्र चाहिए तो इसके लिए निगम कार्यालय में अर्जी देनी होती है। एक शपथ प्रमाणपत्र भी देना होता है, जिसमें यह बताना जरूरी है कि जन्म प्रमाण पत्र क्यों लिया जा रहा है? इसके बाद निगम का जन्म-मृत्यु पंजीकरण विभाग बताए हुए वर्ष के आधार पर दस्तावेजों का अवलोकन करता है। अगर आवेदक का रिकॉर्ड मिल जाता है तो उसको वेरिफाई करने के बाद रिकॉर्ड का विवरण तहसील भेज दिया जाता है। प्रमाणपत्र वहीं से जारी होता है। रिकार्ड नहीं मिला तो नगर निगम इसे भी लिखकर तहसील दफ्तर को भेजता है।