गोपनीय सैनिक की नक्सलियों ने की हत्या
एसपी बोले- ये हमारा सिपाही नहीं
नकुलनार . अरनपुर थाना क्षेत्र के पोटाली से 2 दिन पहले अगवा किए गए गोपनीय सैनिक मोहन की नक्सलियों ने गला रेतकर हत्या कर दी। हत्या के बाद शुक्रवार रात को उसके शव को समेली से बुरगुम जाने वाली सड़क पर अरबे गांव के पास फेंक दिया गया। मोहन भास्कर नीलावाया गांव का रहने वाला था। पुलिस का सहयोग करने की वजह से नक्सलियों ने उसके परिजन को गांव से निकाल दिया था और पूरा परिवार इस समय बासागुड़ा में रह रहा था। लेकिन मोहन की हत्या के बाद पुलिस ने उसे गोपनीय सैनिक या डीआरजी जवान मानने से ही इंकार कर दिया। दंतेवाड़ा एसपी अभिषेक पल्लव भी कुछ ऐसा ही बयान दे रहे हैं और वे कह रहे हैं कि मोहन नक्सली दहशत की वजह से कैंप में रहा था। इधर बताया जा रहा है कि मोहन शराब का आदी था और शराब ही उसकी मौत की वजह भी बनी। जिस दिन नक्सलियों ने मोहन को अगवा किया था उस दिन वह पोटाली कैंप से बिना किसी को बताए शराब पीने गया था और उसी दौरान नक्सलियों ने उसका अपहरण कर लिया।
गोपनीय सैनिक मोहन की बहन बोली- 10 हजार वेतन मिलता था, वर्दी भी दी थी
इधर दंतेवाड़ा एसपी अभिषेक पल्लव ने मोहन को गोपनीय सैनिक मानने से इंकार कर दिया है लेकिन मोहन की बहन देवे का दावा है कि उसका भाई गोपनीय सैनिक था। उसे हर माह वेतन के तौर पर 10 हजार रुपए भी मिलते थे। इसके अलावा उसे बंदूक और वर्दी भी दी गई थी जिसे वह हमेशा अपने साथ रखता था। यही नहीं, पुलिस विभाग के अफसरों ने ही गुरुवार की शाम को उसके अगवा होने की सूचना परिवार को दी थी।
तस्वीरें बयां कर रहीं कि मोहन क्या था
मोहन के अगवा होने के बाद सोशल मीडिया पर कई तस्वीरें वायरल हुईं। तस्वीरों में वह पुलिस की वर्दी और बंदूक के साथ नजर आ रहा है। एक तस्वीर में मोहन वर्दी पहनकर बंदूक पकड़े हुए है तो एक अन्य तस्वीर में भी वह वर्दी और बंदूक के साथ पुलिस जवानों के बीच में नजर आ रहा है। यह तस्वीर किसी नक्सली ऑपरेशन के दौरान की है।
जिसने देश के लिए जान दे दी, उसे अपनाने से इंकार
मोहन के साथ काम करने वाले जवान, परिचित, मित्र सभी को पता था कि वह पुलिस के लिए काम कर रहा था और उसे बतौर गोपनीय सैनिक 10 हजार वेतन भी मिलता था। मोहन देश के लिए काम कर रहा था पर मौत के बाद अफसर अपनाने को तैयार नहीं हैं।
बंदूक कैसे आ गई मोहन के पास, जांच करवाएंगे: एसपी
मोहन के परिवार के सदस्यों और सोशल मीडिया पर उसकी तस्वीरों के वायरल होने के बाद भी दंतेवाड़ा एसपी अभिषेक पल्लव उसे गोपनीय सैनिक या पुलिस का मददगार मानने को तैयार नहीं हैं उल्टे एसपी कह रहे हैं कि मोहन के पास बंदूक कहां से आ गई इसकी जांच करवाएंगे।
पुलिस के बयान के बाद उठे सवाल
- मोहन गोपनीय सैनिक नहीं था तो वर्दी और बंदूक कहां से आ गई?
- यदि मोहन नक्सली दहशत की वजह से कैंप में रह रहा था तो क्या कैंप में रहने वाले लोगों को बंदूक रखने का अधिकार है?
- यदि वह गोपनीय सैनिक नहीं था तो उसे कैंप में रहने के दौरान हर महीने 10 हजार रुपए कहां से मिल रहे थे क्योंकि वह न तो कोई दूसरी नौकरी कर रहा था न काम?
- यदि मोहन गोपनीय सैनिक नहीं था तो नक्सली उसके दुश्मन क्यों बने?
- मौत के बाद जब पूरा परिवार गम में डूबा हुआ है तो उसकी बहन मीडिया को क्यों झूठ बोल रही है कि उसका भाई गोपनीय सैनिक था?
- मोहन गोपनीय सैनिक नहीं था तो वह जवानों के साथ ऑपरेशन में वर्दी और बंदूक लेकर कैसे गया?
- मोहन कैंप के अलावा नक्सली ऑपरेशन में बंदूक लेकर घूम रहा था तो इसकी जानकारी पुलिस के खुफिया विभाग को क्यों नहीं हुई?
- इसके अलावा एक बड़ा सवाल यह है कि मोहन कैंप या जवानों के साथ बंदूक लेकर चल रहा था इसकी जानकारी किसी आला अफसर को नहीं थी ऐसे में मोहन जैसे और कितने लोग हैं जो बिना अफसरों की जानकारी के बंदूक लेकर चल रहे हैं?